रेलवे का Privatisation कितना गलत कितना सही


2019 में तेजस एक्सप्रेस के शुरू होने के बाद से ही ये अटकलें लगनी शुरू हो गई थी कि रेलवे का निजीकरण दूर नहीं हैं। और अब भारत सरकार ने भी रेलवे के निजीकरण की तरफ पहला बड़ा कदम उठा लिया हैं. रेल मंत्रालय (Railway Ministry) ने 109 रुट्स पर यात्री ट्रेनें चलाने के लिए प्राइवेट पार्टीज को इनविटेशन दिया है. इसके लिए प्राइवेट पार्टीज को 30 हजार करोड़ का निवेश करना होगा. पहली बार रेलवे में यात्री ट्रेन चलाने के लिए प्राइवेट पार्टी को आमंत्रित किया गया है. रेलवे के मुताबिक इसका मकसद भारतीय रेल में नई तकनीक का विकास करना है ताकि मेंटेनेंस कॉस्ट को कम किया जा सके. इसके अलावा रेलवे का दावा है कि इससे नई नौकरियों के अवसर भी पैदा होंगे.


अब सवाल ये उठता की privatisation कितना गलत हैं और कितना सही-

अगर गौर करे तो हम देखते हैं कि भारतीय रेलवे उन चुनिंदा सरकारी स्वामित्त्व वाले उपक्रमों की सूची में आती है जिसे साल-दर-साल नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय रेलवे अपने बुनियादी ढाँचे और सेवाओं के आधुनिकीकरण के साथ तालमेल रख पाने में असफल रहा है। हालाँकि वर्तमान में इस दिशा में कार्य जारी है।
रेलवे अपनी सेवाओं जैसे- टिकटिंग, खानपान, कोच रखरखाव और टिकट चेकिंग आदि के विषय में ग्राहकों को संतुष्ट करने में असफल रहा है और यह आम लोगों की रेलवे के प्रति नाराज़गी का प्रमुख कारण है।
तकनीकी स्तर पर भी रेलवे सेवाओं की गुणवत्ता के उच्च मानकों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया है और यही कारण है कि समय-समय पर रेल दुर्घटना की खबरें सामने आती रही हैं।
इसके अलावा रेलगाड़ियों का समय प्रबंधन भी भारतीय रेलवे के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है।
भारतीय रेलवे में सुधार हेतु नीति निर्माण के लिये वर्ष 2014 में गठित बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशें इस संदर्भ में सहायक साबित हो सकती हैं।



क्या लाभ होगा निजीकरण से

1. योग्य कर्मचारियों को नौकरी 

देश की अभी सबसे बड़ी दिक्कतों में से एक हैं आरक्षण. आरक्षण के वज़ह से लगभग सारि सरकारी कार्यालयों में नौकरी से योग्य उम्मीदवार वंचित रह जाते हैं, अब क्योंकि Private कंपनियों में Skills को बढ़ावा दिया जाता हैं वहाँ उम्मीदवारों को उनकी योगयता के अनुसार ही नौकरियां मिलेंगी ।

2. बेहतर बुनियादी ढाँचा

निजीकरण के पक्ष में एक तर्क यह दिया जाता है कि इससे बेहतर बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा मिलेगा और यात्रियों के लिये बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। उम्मीद है कि रेलवे में निजी कंपनियों के आने से बेहतर प्रबंधन संभव हो पाएगा।

3. गुणवत्ता और किराए के मध्य संतुलन

संभवतः रेलवे से लोगों को सबसे अधिक शिकायत यह रहती है कि प्रदान की गई सेवाओं की गुणवत्ता यात्रियों द्वारा किये गए भुगतान से मेल नहीं खाती है। रेलवे में निजीकरण के समर्थक मानते हैं कि इसके पश्चात् उपरोक्त समस्या को आसानी से संबोधित किया जा सकता है।

4. दुर्घटनाओं में कमी

कई अध्ययनों में सामने आया है कि देश में ट्रेन दुर्घटनाओं का सबसे मुख्य कारण रखरखाव की कमी है और निजीकरण समर्थक मानते हैं कि यदि हमें इन दुर्घटनाओं पर रोक लगानी है तो निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति देनी होगी।

5. प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि

अभी तक रेलवे में रेलवे बोर्ड का एकाधिकार है, परंतु निजीकरण के माध्यम से इस क्षेत्र में एकाधिकार को समाप्त कर प्रतिस्पर्द्धा लाई जा सकती है, ताकि ग्राहकों को बेहतर-से-बेहतर सुविधा प्रदान की जा सके।


रेलवे में निजीकरण के नुकसान

1. सीमित कवरेज

यदि रेलवे का स्वामित्त्व भारत सरकार के पास ही रहता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह लाभ की परवाह किये बिना राष्ट्रव्यापी कनेक्टिविटी प्रदान करती है। परंतु रेलवे के निजीकरण से यह संभव नहीं हो पाएगा, क्योंकि निजी उद्यमों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है और उन्हें जिस क्षेत्र से लाभ नहीं होता वे वहाँ कार्य बंद कर देते हैं।

2. सामाजिक न्याय
निजी उद्यमों का एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना होता है और रेलवे में लाभ कमाने का सबसे सरल तरीका किराए में वृद्धि है और यदि ऐसा होता है तो इसका सबसे ज़्यादा असर आम नागरिकों पर पड़ेगा।

3. जवाबदेही

निजी कंपनियाँ अपने व्यवहार में अप्रत्याशित होती हैं और इनमें जवाबदेहिता की कमी पाई जाती है, जिसके कारण रेलवे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में इनके प्रयोग का प्रश्न विचारणीय हो जाता है।

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