क्या न्याय के लिए धर्म और जाति महत्वपूर्ण हैं?

न्याय दिलाने के लिए धर्म और जाति पूछने या बताने का क्या मतलब हैं, क्या एक जाति या धर्म विशेष के लिए न्याय आसानी से मिलेगा और दूसरे के लिए मुश्किल से?
अगर पीड़ित को सिर्फ पीड़ित बोला जाए तो क्या तकलीफ़ हैं, लेकिन यहाँ दलित, मुस्लिम , माइनोरिटी जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता हैं । इसमे मीडिया या तो धार्मिक या सामुदायिक तुष्टीकरण से TRP बटोरना चाहती हैं या अपने विचारधारा को आगे बधाने की कोशिश में हैं । 
इसको राजनीति से ज्यादा देर तक दूर नहीं रखा जा सकता, एक तरफ़ कुछ राजनीतिक पार्टियां डिस्क्रिमिनेशन नहीं करने की बात करती हैं वहीं दलित, मुस्लिम , माइनोरिटी बोलके DISCRIMINATE भी करती हैं । इसमें एक बड़ा पहलू ये भी हैं कि इनका ये डिस्क्रिमिनेशन भी एक वर्ग विशेष तक ही सीमित हैं। इसको उदाहरणों से समझना बेहतर होगा -
माना एक घटना घटती हैं जिसमे पीड़ित कोई दलित या मुस्लिम हैं, मुज़रिम चाहे कोई भी हो मीडिया तथा राजनीतिक पार्टिया इसमें दलित शब्द का उपयोग करती हैं, और साथ ही न्याय की मांग न्याय से ज्यादा होने लगती हैं, अपराध सिद्ध होने से पहके ही एक मुज़रिम के पूरे समाज को ही अपराधी घोषित कर दिया जाता हैं ।
अब दूसरी घटना लेते हैं जिसमे पीड़ित कोई ब्राह्मण या सामान्य CATAGORY का कोई व्यक्ति हैं और उसके साथ कोई बहुत बड़ा अपराध हो जाता हैं, ऐसी स्थिति मे  यही मीडिया और राजनीतिक पार्टियां या तो चुप हो जाती हैं या नागरिक, व्यक्ति, निवाशी जैसे शब्दो का उपयोग करती हैं ।

आख़िर ऐसा क्यों हो रहा हैं? इस सवाल का जवाब जनता बेहतर जानती हैं:)


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