चश्मो की दुनिया

पिछले एक-दो दशक से यहां चश्मो का बोलबाला रहा हैं, कुछ लोगो को महंगी किताबो के छोटे अक्षरों ने चस्मा लगाने पर मज़बूर कर दिया तो कुछ को क्लास के दूसरे छोर पर लगे बोर्ड ने ।
दुनिया गोल हैं और आसमान जाकर दूसरे गांव में किसी नदी के पानी को छूता हैं, ऐसा जाननेवाले  हमलोग तो बस यही समझते थे कि नानी का घर दूसरी दुनिया में हैं... लेकिन जैसे ही एक उम्र पर हाथ मे साइकल मिली दुनिया और अजीब हो गई, किताब के किसी पन्ने पर यह भी लिखा हुआ मिला कि धरती गोल हैं और यह सूरज के चक्कर लगाती रहती हैं..अब जिन बच्चो का बचपन "चंदा मामा दूर के....." गाते हुए गुज़रा था उनको यह कैसे भरोषा हो कि आपके चंदा मामा धरती के  चक्कर लगा रहे हैं ।
इतने सवालो से भरा हुआ व्यक्ति दुनिया को गौर से देखने की कोशिशें करने लगता हैं और इन सब की सताई आंखे चश्मे को :)

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