NOTA का क्या महत्त्व है?


 

(None of the above, or Nota) उन मतदाताओं को एक विकल्प उपलब्ध कराता है जो चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते अथवा अयोग्य  समझते है . भारत के अलावा ग्रीश, यूक्रेन, कोलंबिया और रूस जैसे कई देशो में भी चुनाव में नोटा का विकल्प दिया जाता है. वास्तव में ये विरोध करने का हथियार है जिससे सिर्फ और सिर्फ विरोध किया जा सकता है क्युकी अभी तक भारत मे इसका इससे ज्यादा महत्त्व नहीं है. 


क्या होगा अगर NOTA जीत जाये?


भारत में चुनाव में नोटा के वोट का कोई महत्व नहीं है अगर नोटा के वोट्स चुनाव लड़ रहे हर एक उम्मीदवार के वोट्स से ज्यादा भी हो जाये तब भी उम्मीदवारों में जिसके ज्यादा वोट है उन्हें विजेता घोषित किया जायेगा. तो सवाल ये उठता है की अगर नोटा का कोई महत्व ही नहीं है तो फिर इसका फायदा क्या है? जब सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में नोटा को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में एक विकल्प के रूप में लाने का निर्देश दिया था तब उनका मानना था की इससे राजनीतिक दलों पर यह दबाव बनेगा की वो उचित उम्मीदवारों को नामित करे. 

NOTA का इतिहास -


नोटा का इतिहास अभी बहुत बड़ा नहीं क्युकी पहली बार नोटा का इस्तेमाल 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का बाद शुरू हुआ है.पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) द्वारा डाली गई याचिका पर सर्वोच्च न्यायलय ने फैसला देते हुए कहा था "हम चुनाव आयोग को मतपत्र /ईवीएम में आवश्यक प्रावधान प्रदान करने का निर्देश देते हैं और एक अन्य बटन जिसे "उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा)" कहा जा सकता है ताकि ईवीएम में मतदाता को विकल्प उपलब्ध हो सकें ताकि पोलिंग बूथ और चुनाव मैदान में किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का फैसला करते हैं तो गोपनीयता के अपने अधिकार को बनाए रखते हुए वोट नहीं देने के अपने अधिकार का उपयोग करने में सक्षम होते हैं. "
 चुकी यह बात नकारी नहीं जा सकती की भारत में इस समय सिर्फ २-३ राजनितिक दलों का वर्चस्व है ऐसे में आवश्यक है की उचित जनप्रतिनिधि को उम्मीदवार बनाने के लिए इन दलों पर दबाव बनाया जाये और इसके लिए नोटा कारगर शाबित हो सकता है. 


NOTE:- इससे पहले भी जब चुनाव वैलेट से हुआ करते थे तब मतदाता के पास वालेट पेपर को ख़ाली छोड़कर विरोध दर्ज करने का विकल्प होता था. 

NOTA का चुनाव चिन्ह-



2015 में, भारत के चुनाव आयोग ने अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन (NID) द्वारा डिज़ाइन किए गए विकल्प के साथ 'उपरोक्त में से कोई नहीं' के लिए प्रतीक की घोषणा की। 
हालांकि इससे पहले, मांग की गई थी कि चुनाव आयोग नोटा के लिए एक गधे का प्रतीक आवंटित करे ताकि ये मतदाताओं को आकर्षित कर सके और साथ ही साथ काम नहीं करने वालो तथा आलसी नेताओ को एक सन्देश मिले.

चुनावों में अब तक NOTA का प्रदर्शन 


कई चुनावों में, नोटा को चुनाव लड़ने वाले कई राजनीतिक दलों की तुलना में अधिक वोट मिले हैं। 
उदाहरण के लिए.....
  • 2017 चुनाव में चंडीगढ़ में  NOTA को पांच बहुचर्चित पार्टियों CPM, CPI, SAD (Amritsar), Revolutionary Marxist Party of India और  Aapna Punjab Party से भी अधिक प्रतिशत में मत मिले. 
  • 2018 चुनाव में कर्णाटक में नोटा को 6 राष्ट्रव्यापी पार्टियों जिनमे Bahujan Samaj Party  और Communist Party of India (Marxist) भी शामिल थे से ज्यादा संख्या में मत मिले.2017 में पंजाब विधानसहभा चुनाव में 2 सीटों पर हर-जीत का अंतर नोटा के वोट्स से काफी काम रहा.
  • 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में, (जीतने वाले) भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर के बीच का अंतर केवल 0.1% था, जबकि नोटा ने 1.4% के वोट शेयर पर मतदान किया।


NOTA में सुधार की आवश्यकता


यह बात अलग है की नोटा की लोकप्रियता धीरे धीरे बढ़ रही है लेकिन वास्तविक रूप में इसका महत्व नहीं होने के कारन कुछ चुनाव में वोट न करने का या निर्णय लेते है या मज़बूरी में अयोग्य उम्मीदवार को वोट देते है इसीलिए इसमें सुधार की आवश्यकता है. 
2016 और  2017 में नोटा के प्रभाव को मजबूत करने के लिए  PIL दायर किया गया था इसमें पॉवर को रिजेक्ट करके - फिर से चुनाव कराने के लिए कहा गया था. इसे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए नकार दिया था की  "हमारे देश में चुनाव करना गंभीर और महंगा व्यवसाय है". 
वैसे लोकतंत्र को मजबूत करने के दृष्टिकोण से यह एक कमजोर जवाब लगता है.

भारत में नेताओ की योग्यता का कोई मापदंड नहीं है ऐसे हालत में जरुरी है की नोटा को इतनी ताकत मिले की जनता अपने मत से नेताओ को अयोग्य घोषित कर सके. 


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